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छठ पूजा : लोक आस्था का महापर्व ( Chhath Pooja - Hindi Blog )

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लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा(Chhath Pooja) मुख्य रूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखण्ड में मनाया जाता है। हालांकि इन क्षेत्रों के लोग रोज़गार और व्यापार के कारण देश और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में रहने लगे है जिससे यह त्यौहार पूरे विश्व के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाने लगा है। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक है जिसमें लगभग 36 घंटे तक बिना भोजन और पानी पिए व्रत रहना पड़ता है। छठ पूजा(Chhath Pooja) हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक षष्टी को मनाया जाता है। यूँ तो कहावत है की उगते सूरज को सभी प्रणाम करते हैं लेकिन यह महान भारतीय संस्कृति की विशेषता ही है जिसमें डूबते सूरज को भी प्रणाम किया जाता है। यह त्यौहार मानव जीवन के प्रकृति के प्रति प्रेम भाव का प्रदर्शन भी है। छठ पूजा(Chhath Pooja) के समय भोजपुरी भाषा में गाये जाने वाले कुछ गीत बेहद लोकप्रिय और दिल को छू लेने वाले होते हैं -  कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए,  बहंगी लचकत जाए,  होइँ ना बलम जी कहरियाँ, बहंगी घाटे पहुँचाये।  इस गीत के अलावा सुबह सूर्य भगवान को अर्घ देने के लिए सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हुए यह गाना गाया जाता

कल की ही बात है (It was Just Yesterday - Hindi Poem)

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 यह कल की ही बात है जब समझ आया अपने होने का, नए स्कूल में एडमिशन मिलने का, नए कपड़ों बस्तों को पाने का, स्कूल के दोस्तों और मोहल्ले के खेलों में डूब जाने का, आज मां ने समोसे बनाया है ये सोच के खुश हो जाने का, यह कल की ही बात है कुछ दांतों के टूट जाने का, उसको जमीन में अच्छे से दफनाने का,  कहीं जम ना जाए पेट में गलती से खाया वो बीज, इस घबराहट में पूरी रात जागते गुजारने का, यह कल की ही बात है चुपके दबे पांव घर से बाहर खेलने जाने का, मोहल्ले के पेड़ों से दोस्तों संग दुपहरी में कुछ आम चुराने का, शक्तिमान का ड्रेस लेने के लिए सबको मनाने का, शाम को होमवर्क कर लूंगा लेकिन फिर भूल जाने का, यह कल की ही बात है जब सेकंडरी बोर्ड एग्जाम का सोच के घबराने का, फिर दोस्त क्या पढ़ रहे होंगे ये पता लगाने का, बस एक घंटे की परमिशन पे तीन घंटे खेल जाने का, वापस घर आने पर लंबी डांट खाते हुए आंसू गिराने का, यह कल की ही बात है बायोलॉजी से ज्यादा मैथ्स में स्कोप जताने का, केमिस्ट्री की लैब में सारे केमिकल को आपस मिलाने का,  नई साइकिल के साथ नई घड़ी मिलने पर ज़रा इतराने का, जेब खर्च कुछ बढ़ जाने पर खुशी से खिलखि

गुलमोहर का वह पेड़ (That Flame Tree-Hindi Blog)

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यह कहानी मेरे और गुलमोहर के उस पेड़(Gulmohar Tree) की है जिसे मैंने अपने कार्यालय के परिसर में बड़े प्यार से लगाया था।  यूँ तो मेरे विभाग केंद्रीय वस्तु और सेवा कर तथा सीमा शुल्क में समाज और पर्यावरण के पार्टी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का मौका हमेशा मिलता रहता है जैसे बाढ़ राहत कार्य, स्वच्छता अभियान, कोरोना में प्रवासी मज़दूरों की सहायता और वृक्षारोपण के कार्यक्रम। लेकिन कोल्हापुर आयुक्तालय के अधिकार क्षेत्र में उच्च अधिकारियों के मार्गदर्शन में ऐसे कार्यक्रम खासकर वृक्षारोपण के कार्यक्रम हमेशा चलते ही रहते हैं जैसे ये हमारी जीवन शैली का हिस्सा हो। यह जनवरी 2019 की बात है। ऐसे ही वृक्षारोपण के एक कार्यक्रम में केंद्रीय जीएसटी सांगली मंडल कोल्हापुर आयुक्तालय जो की मेरा कार्यस्थल भी है हम सभी ऑफिस सहकर्मियों को अनेकों पौधे लगाने का मौका मिला।  बहुत सारे पौधों के बीच मैं पहली बार इस गुलमोहर के पौधे(Gulmohar Plant) से मिला। गुलमोहर के पौधे(Gulmohar Plant) को अंग्रेजी में फ्लेम ट्री(Flame Tree) या रॉयल पॉइनसाना(Royal Poinciana) और वैज्ञानिक नाम डेलोनिक्स रेजिआ(Delonix Regia) है। मुझे

हर दिल अज़ीज़ थे राहत इंदौरी (Rahat Indori - A Great Shayar, Lyricist & Lovely Person)

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1 जनवरी 1950 को इंदौर के एक गरीब घर में पैदा हुए डॉ राहत इंदौरी(Dr. Rahat Indori) साहब का आज 11 अगस्त 2020 को अचानक हृदय गति के रूक जाने से हुई मृत्यु से देश के साहित्य और उर्दू   काव्य को पसंद करने वाले लोग हतप्रभ और दुखी है।  वो कोरोना से भी ग्रसित थे और इंदौर   के ही एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।  अगर हिंदी काव्य में मेरी रुचि डॉ कुमार विश्वास(Dr. Kumar Vishwas) के कारण हुई तो उर्दू शायरी में दिलचस्पी का कारण सिर्फ और सिर्फ डॉ राहत इंदौरी(Dr. Rahat Indori) साहेब थे। स्कूल के समय से ही इनको सुनता चला आ रहा था।  पहले व्हाट्सप्प के ऑडियो में उनको सुना और फिर जब यूट्यूब पे सर्च किया तो लगा कोई शायरी नहीं कह रहा है जैसे दिल की बात को लफ़्ज़ों में बयां कर रहा है। एक समय तो ऐसा भी आया जब राहत साहेब(Dr. Rahat Indori) की मुशायरों की वीडियो देखे बिना नींद नहीं आती थी। बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं।  इंदौर के गलियों से निकला यह शख्स हिंदोस्तान के साथ साथ पूरी दुनिया में अपने हुनर और साहित्यिक कुशलता का ऐलान करते हुए भी इतना

क्षमा मांगता हूं ( I Say Sorry - Hindi Poem )

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लगी बंदिशें जब, हुआ इल्म मुझको, कि दिया दर्द जिसको क्षमा मांगता हूं, मुझे माफ़ करना ऐ उड़ती सी तितली, जो तुमको था घेरा घने शाख से मैं,  इक प्यारी सी चींटी का परिवार छिना, जो कागज की कश्ती पे उसको बिठा के, पता बचपनों में कहां था किसी को, समझ आई अब जो क्षमा मांगता हूं. वो चिड़ियां को दाना जो डाला था मैंने, थी साजिश की उसको पकड़ना है ऐसे,  जो छोटी सी मुट्ठी को पानी में डाला, और मछली के बच्चे को बाहर निकाला, अभी जो ये सोचा तो एहसास आया, किया काम ऐसा क्षमा मांगता हूं. पतंगों को पत्थर के फंदे में लेकर, वो छिप के छतों से जो मांझा चुराया, जो पैसे गिरे थे कहीं पे जमीन पर, उठाया था मैं सबकी नज़रें बचाकर, था उम्र का तकाज़ा अभी याद आया, नहीं देर अब भी क्षमा मांगता हूं. वो मम्मी के बिस्कुट छुपाए हुए थे, जो मैंने दुपहरी में चुपके से खाया, थी जब मुझको इक दिन जरा सी जरूरत, तो गुल्लक के पैसे को पिन से निकला, भला ये भी किस्सा कहां याद रहता, अभी याद आया क्षमा मांगता हूं.

Those Kendriya Vidyalaya Days!!!

KV Days . सोच कर ही मन में रोमांच भर जाता है कि क्या दिन थे वो. मैंने एक छोटे से स्कूल में नर्सरी से 2 तक पढ़ाई  किया. तभी पता चला की रेलवे एम्प्लाइज के बच्चो के लिए KV खुल रहा है गोंडा में.  मुझे अभी भी याद है जब पापा मुझे प्यार से समझा रहे थे की बेटा एंट्रेंस एग्जाम अच्छे से देना.तुम्हारे भविष्य के लिए इसमें पास होना बहुत ही ज़रूरी है. खैर मैं पास हुआ और विनोद भाई ने मुझे जोमेट्री बॉक्स गिफ्ट में दी. मेरा एडमिशन क्लास ३ में हुआ. मैं केवल २ लोगो को जानता था.और दोनों मेरे प्रिय मित्र है. एक थे भाई खान अज़हर नईम जो पिछले स्कूल में मेरे साथ थे और पुराने नाम नसीम खान को बदल कर आये थे और दूसरे थे भाई अभिषेक सिंह जो मेरे कॉलोनी के थे और सोनू के नाम से हमारी क्रिकेट और आइस पाइस टीम के सदस्य थे.  KV गोंडा जो की शुरुआत में गिरजा चर्च में खुला था. क्लास रूम पर्दो ke द्वारा बांटा गया था. क्लास में दरी पे और सर्दियों में बाहर मैदान में बैठ कर पढ़ाई करने का मज़ा ही कुछ और था. मुझे आज भी वो दिन याद है जब हम लोग म्यूजिक, लाइब्रेरी, ड्राइंग, supw  की क्लास में रिक्वेस्ट करके  गेम्स खेलते थे फिर गुस्से स

Change is the Law of Nature

Change is the Law of Nature These day when i am very far away from home in this Navaratre season, i am thinking of my childhood days. Durga Pooja was my favourate festival because in these days we get freedom to come home in the late night. We daily went to Rani Bazar (in Gonda) to see the Durga Pooja pandals and realy feel better in between huge crowed. We taste street snacks specialy paani poori and chat.In morning it was pleasure to have Garma garam Jalebi with Curd. We also made rough statue of Maa Durga by soil and then we do visharjan in the evening. After navaratre, we celebrated dushahra by firing the Ravan made up of Old newspaper. We collect 10 rupees from each member and then buy some Huge sound Patakhe. The Ravan made by us was realy scary because of his long red tongue. The Dada Dadi, Uncle aunty of whole Mohalla always be there in there balcony to watch our celebration.  After few years............ College days comes...again very dramatic change came