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धैर्य रखने से मंज़िल मिला करता है (Patience - Hindi Poem)

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जब कठिन वक्त में मन बिखर जाता है, अपने मंजिल को पाने निकल पड़ता हैं, वक्त सब्र का ज़रा इम्तेहान लेता है, धैर्य रखने से मंज़िल मिला करता है।  जैसे नदियों का सागर से मिलने निकलना, कभी घाटों या जंगल से दो चार होना, फिर टेढ़े से रस्तों से गुजरना होता है, धैर्य रखने से मंज़िल मिला करता है।  जैसे चींटी को चीनी के दाने का मिलना, है भारी बहुत लेकिन कंधे पे ढोना, यूं मुश्किल से घर को जाना होता है धैर्य रखने से मंज़िल मिला करता हैं।  जैसे बगुले का पानी में नजरें जमाना, जल में छोटी सी मछली पे आंखे गड़ाना, ऐसे कर्मों का फल रब अदा करता है धैर्य रखने से मंज़िल मिला करता हैं।    मेरे व्याकुल से मन ज़रा रुक तो सही, सब मिलेगा तुम्हे इतनी जल्दी नहीं, जितना सोना तपेगा खरा होता है, धैर्य रखने से मंज़िल मिला करता है।  ******** रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

मैं सत्य हूँ (I am Truth - Hindi Poem)

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तुम चाहो तो मुझे मसल दो झूठ के दम पर, लेकिन मैं बिखर जाऊंगा ज़मीं पर चींटियों की तरह, फिर मसलना कठिन होगा, क्योंकि मैं सत्य हूँ। हो सकता है तुम मुझे जकड़ लो फंदों में, पर फिर भी मैं आसमान में फैल जाऊंगा परिंदों की तरह, मुश्किल होगा पकड़ना फिर से, क्योंकि मैं सत्य हूँ। मुझे कैद कर सकते हो जाल बिछाकर धोखे से, मैं नज़र आऊंगा समुद्र में झुंड मछलियों की तरह, आसान नही होगा कैद कर पाना, क्योंकि मैं सत्य हूँ। तुम भले ही बादलों से ढक दो मेरे अस्तित्व को, कुछ देर से ही सही नज़र आऊंगा तारों की तरह, नही नकार सकते मेरे अस्तित्व को, क्योंकि मैं सत्य हूँ। मैं अविचल हूं हिमालय की तरह, अविरल हूं झरने की तरह, निर्मल हूं गंगा की तरह, निरंतर हूं लहरों की तरह, अंत में जीत मेरी ही निश्चित है, क्योंकि मैं सत्य हूँ। ******** रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

कल की ही बात है (It was Just Yesterday - Hindi Poem)

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 यह कल की ही बात है जब समझ आया अपने होने का, नए स्कूल में एडमिशन मिलने का, नए कपड़ों बस्तों को पाने का, स्कूल के दोस्तों और मोहल्ले के खेलों में डूब जाने का, आज मां ने समोसे बनाया है ये सोच के खुश हो जाने का, यह कल की ही बात है कुछ दांतों के टूट जाने का, उसको जमीन में अच्छे से दफनाने का,  कहीं जम ना जाए पेट में गलती से खाया वो बीज, इस घबराहट में पूरी रात जागते गुजारने का, यह कल की ही बात है चुपके दबे पांव घर से बाहर खेलने जाने का, मोहल्ले के पेड़ों से दोस्तों संग दुपहरी में कुछ आम चुराने का, शक्तिमान का ड्रेस लेने के लिए सबको मनाने का, शाम को होमवर्क कर लूंगा लेकिन फिर भूल जाने का, यह कल की ही बात है जब सेकंडरी बोर्ड एग्जाम का सोच के घबराने का, फिर दोस्त क्या पढ़ रहे होंगे ये पता लगाने का, बस एक घंटे की परमिशन पे तीन घंटे खेल जाने का, वापस घर आने पर लंबी डांट खाते हुए आंसू गिराने का, यह कल की ही बात है बायोलॉजी से ज्यादा मैथ्स में स्कोप जताने का, केमिस्ट्री की लैब में सारे केमिकल को आपस मिलाने का,  नई साइकिल के साथ नई घड़ी मिलने पर ज़रा इतराने का, जेब खर्च कुछ बढ़ जाने पर खुशी से खिलखि

चलते जाना है (We have to Go - Hindi Poem)

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चलते चलते जब रुकना हुआ तो खुद से ये पूछना हुआ , कि कल घर से निकला ही क्यों था जब रुकना ही था तो चला क्यों था , अन्दर से फिर ये आवाज़ आई कि चलता रह रुक मत भाई , जो रुक गया वो सूख गया जो चलता गया वह मिसाल बना , कभी समुद्र को सूखते देखा है कभी दरिया को रुकते देखा है , तालाब तो अक्सर सूख जाते है लेकिन लहरे क्यों नहीं सूखती , जब भी हमने चलना छोड़ दिया यू समझो अपना   सब कुछ खो दिया , चींटी और बादल भी चलते रहते है अपने किरदार को निभाने के लिए , किरदार को छोड़ कर जीना भी क्या जीना है थक कर रुक कर ठहरना भी मरना है , तो चलो फिर से उठ खड़े होते है मरने से पहले एक बार फिर जी लेते है , मंज़िल मिले या ना मिले कोई गम नहीं पर पुरानी सड़क पर नए जोश से बढ़ चलते हैं।  ****** रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा  👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feed

हर दिल अज़ीज़ थे राहत इंदौरी (Rahat Indori - A Great Shayar, Lyricist & Lovely Person)

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1 जनवरी 1950 को इंदौर के एक गरीब घर में पैदा हुए डॉ राहत इंदौरी(Dr. Rahat Indori) साहब का आज 11 अगस्त 2020 को अचानक हृदय गति के रूक जाने से हुई मृत्यु से देश के साहित्य और उर्दू   काव्य को पसंद करने वाले लोग हतप्रभ और दुखी है।  वो कोरोना से भी ग्रसित थे और इंदौर   के ही एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।  अगर हिंदी काव्य में मेरी रुचि डॉ कुमार विश्वास(Dr. Kumar Vishwas) के कारण हुई तो उर्दू शायरी में दिलचस्पी का कारण सिर्फ और सिर्फ डॉ राहत इंदौरी(Dr. Rahat Indori) साहेब थे। स्कूल के समय से ही इनको सुनता चला आ रहा था।  पहले व्हाट्सप्प के ऑडियो में उनको सुना और फिर जब यूट्यूब पे सर्च किया तो लगा कोई शायरी नहीं कह रहा है जैसे दिल की बात को लफ़्ज़ों में बयां कर रहा है। एक समय तो ऐसा भी आया जब राहत साहेब(Dr. Rahat Indori) की मुशायरों की वीडियो देखे बिना नींद नहीं आती थी। बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं।  इंदौर के गलियों से निकला यह शख्स हिंदोस्तान के साथ साथ पूरी दुनिया में अपने हुनर और साहित्यिक कुशलता का ऐलान करते हुए भी इतना

क्षमा मांगता हूं ( I Say Sorry - Hindi Poem )

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लगी बंदिशें जब, हुआ इल्म मुझको, कि दिया दर्द जिसको क्षमा मांगता हूं, मुझे माफ़ करना ऐ उड़ती सी तितली, जो तुमको था घेरा घने शाख से मैं,  इक प्यारी सी चींटी का परिवार छिना, जो कागज की कश्ती पे उसको बिठा के, पता बचपनों में कहां था किसी को, समझ आई अब जो क्षमा मांगता हूं. वो चिड़ियां को दाना जो डाला था मैंने, थी साजिश की उसको पकड़ना है ऐसे,  जो छोटी सी मुट्ठी को पानी में डाला, और मछली के बच्चे को बाहर निकाला, अभी जो ये सोचा तो एहसास आया, किया काम ऐसा क्षमा मांगता हूं. पतंगों को पत्थर के फंदे में लेकर, वो छिप के छतों से जो मांझा चुराया, जो पैसे गिरे थे कहीं पे जमीन पर, उठाया था मैं सबकी नज़रें बचाकर, था उम्र का तकाज़ा अभी याद आया, नहीं देर अब भी क्षमा मांगता हूं. वो मम्मी के बिस्कुट छुपाए हुए थे, जो मैंने दुपहरी में चुपके से खाया, थी जब मुझको इक दिन जरा सी जरूरत, तो गुल्लक के पैसे को पिन से निकला, भला ये भी किस्सा कहां याद रहता, अभी याद आया क्षमा मांगता हूं.

हाँ मैं मजदूर हूं ( Yes, I am a Laborer - Hindi Poem)

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हाँ मैं मजदूर हूं, इन तमाम फैक्ट्रियों को चलाने में लगने वाला खून हूं, लंबी सड़कें, ऊंची इमारतों  में पसीना देने के लिए मशहूर हूं, पहले गोरे अंग्रेजों अब काले अंग्रेजों से मजबूर हूं, हाँ मैं मजदूर हूं. कभी वामपंथ कभी राष्ट्रवाद के भाषणों का नूर हूं, ग़रीबी, भूखमरी, महंगाई से लड़ता हुआ वीर हूं, अपने परिवार का पेट पालते पालते थक के चूर हूं, हाँ मै मजदूर हूं. पहले गिरमिटिया का कंट्राकी, अब देश में ही अपनों से दूर हूं. पैदल चलकर  घर वापसी करता समाज को नामंजूर हूं, अपनों से मिलने की आस लिए धरती के भगवानों की नजरों से दूर हूं, हाँ मै मजदूर हूं. रेल की पटरियों पर कटने,कभी सड़क पे खून से लथपथ गंभीर हूं, भूखे पेट बीमारी से जूझता हाड़ मांस का सूखा शरीर हूं, पहले पलायन के लिए, अब घर जाने को में मशगूल हूं, हाँ मैं मजदूर हूं. लेकिन फिर बुलाओगे मुझे वापस इसी जमीन पर, क्योंकि तुम्हारी सपनों के महल का मैं ही नींव हूं, वापस भी आऊंगा मैं क्यूकिं परिवार के पेट पालने को मजबूर हूं, देश को बनाने में जान लगा देने में दधीचि जैसा वीर हूं, हां मैं मजदूर हूं. ******* नोट - गिरमिटिय

शादी की पहली वर्षगांठ (The First Wedding Anniversary - Hindi Poem)

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सोचा था शादी की पहली वर्षगांठ कुछ यूं होगा, एक केक होगा, कुछ मोमबत्तियां होंगी, थोड़े गुलाब होंगे कुछ एहसास बेहद खास होंगे, शायद कुछ पकवान होंगे अपनों के कुछ कॉल होंगे, हम दोनों एक साथ होंगे, जो मिलकर बीते साल को याद करेंगे, शादी की एलबम और वीडियो से जी लेंगे वो खूबसूरत पल, हां ऐसा ही सोचा था कि होगा ये खास दिन. आज हमारी शादी की पहली वर्षगांठ है, ना तुम पास हो ना केक है ना मोमबत्तियां, और ना गुलाब है ना तुम्हारे पास होने का एहसास . थोड़ा अकेलापन है, थोड़ी मायूसी है, माहौल में कुछ अजीब सी खामोशी है लेकिन कुछ तो साथ है, अपनेपन का एहसास दिलाती तुम्हारी तस्वीर  है , अब तक बिताए गए पलों की स्मृतियां हैं, हमेशा साथ रहने का वादा और इरादा है, जल्दी ही हम साथ होंगे ऐसा भरोसा है. तुम अभी दूर ही सही लेकिन, मुझ में तुम्हारे होना का एहसास है, हां, आज हमारी शादी की पहली वर्षगांठ है. ****** रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉

कोरोना तो बस लक्षण है देश पहले से बीमार है (Corona is Just a Symptom, Country is already ill - Hindi Poem)

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सोशल मीडिया का इस दौर में अजब ही हाल है, जिसे देखो वही भ्रम और दुष्प्रचार का शिकार है, नफ़रत फर्जीवाड़े का फलता फूलता व्यापार है, कोरोना तो बस लक्षण है देश पहले से बीमार है. जिधर देखो उधर एक अजीब सा मायाजाल है, एक दूसरे के खिलाफ भड़काऊ विचार है, नेता मज़े में और गरीबों का हाल तार तार है, कोरोना तो बस लक्षण है देश पहले से बीमार है. धर्म के नाम पर झूठी खबरों का अंबार है, नेताओं का युवाओं को यही पुरस्कार है, बिक चुकी है मीडिया, दहशतगर्दों का अंबार है, कोरोना तो बस लक्षण है देश पहले से बीमार है. ******* रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

बारिश की बूंदे (The Rain Drops - Hindi Poem)

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ये बारिश की बूँदें ये सर्द मौसम, जख़्मों को न कुरेद ज़ुल्म की इन्तेहा न कर. ये कुदरत की फ़ितरत है या है कोई साज़िश, जो दूर है उसके एहसास का क़ासिद ना बन. *******  रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

ये मोहब्बत है (This is Love - Hindi Poem)

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ये मोहब्बत है दावेदारियों कोई खेल नहीं, गर जज़्बात गहरे हो तो जौहरी मिल ही जाते है. भले ही मीरा ने पाई लाख नाकामी, किसी राधा को कृष्णा मिल ही जाते हैं. ****** रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा  Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

नाराज़ सी है एक लड़की (That Angry Girl - Hindi Poem)

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नाराज सी है एक लड़की मुझसे, जाने क्यों बार बार मनाने को जी चाहता है. कुछ ख्वाब अधूरे से रह गए थे उसके साथ, ना होंगे पूरे पर फिर भी जान देने को जी चाहता है. मन करता है कि बोल दूं कि बहुत कीमती हो तुम, मगर कैसे बोलू बात ज़ुबान पे आ के रुक जाता है. जानता हूं कि बहुत मानती है मुझको, मुझसे भी ज्यादा, लेकिन क्या करूँ बार बार नाराज़ सा कर देता हूँ. पता नही क्यों कब कैसे किन ख्यालो में रहता हूं, प्यार है दिल में लेकिन बाहर न निकाल पता हूं. भगवान अगर मेरी एक ख्वाहिश करनी हो पूरी , यही है आरज़ू की वो ख्वाहिश उसकी की हो पूरी. वो बोलती है कि बात ना करूँगी अब तुमसे, दिल में चुभ जाती है बात कोई तीर जैसे. कहना चाहता हूँ कि बहुत खास हो तुम, दूर नही हो दिल के बहुत पास हो तुम. फिर से बोल रहा हूँ ध्यान से सुन लो, प्यार बहुत है दिल मे चाहे तो जान भी लेलो. ना कहना फिर से की बात ना करना है, दिल बैठ जाता है जब ये सुनता हूँ. नाराज सी है एक लड़की मुझसे, जाने क्यों बार बार मनाने को ज

मिलने की ख्वाहिश (The wish to Meet Her - Hindi Poem)

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मिला हूँ बस एक बार उनसे, फिरसे जल्दी मिलने की ख्वाहिश है. कभी इतना बेचैन ना हुआ, क्या ये दिल की किसी और दिल से ज़ोर आज़माइश है. पता नही मन किन ख्यालो में खोया सा दिखता है, आईने में खुद को देख के मुस्कुराना भी अच्छा लगता है. जो कमीज़ बेतरतीब सी डाल लेता था जिस्म पे, अब बार बार संभालने को जी चाहता है. वैसे पता है मुझे भी कि इंतेज़ार का फल मीठा होगा, जैसे धीमी आँच पे चाय उबलने के बाद का मज़ा. कुछ प्यारी सी शैतानियां भी आ गयी है मुझ में, कि सबकी आंखों से छुपा के प्यार का इज़हार हो उनसे. अच्छा लगता है टेनिस का गलत शॉट भी क्यूंकि, उनका ख्याल ही था जो भटका दिया था मुझको. अब तो हारना भी बुरा नही लगता इस खेल में, भला हो क्यों अगर जीत हो रही हो दिल के खेल में. ज़रूरी ये नही की शब्द दिल की बात कह जाएं, ज़रूरी ये की बात उनके दिल को छू जाए. मालूम नही की उनके दिल का हाल क्या है, मर्ज यही है कि वहां भी हाल बेहाल सा है. बुलाना चाहता हूँ उनको अपने दिल के पास, जैसे किसी मूरत की जगह मंदिर के पास. पता

दिल खोया खोया सा क्यों है (Why heart is lost - Hindi Poem)

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कुछ तो दिल कह रहा है तुमसे, दिल में चाहत का अज़ीब सा नशा है. कमी सी है कुछ एहसासों की, दिल खोया खोया सा क्यों हैं. इंतेज़ार कर रहा था करूँगा भी, पर दिल समझने को तैयार नही है. सुकून है कि जल्दी ही मिलना होगा पर, दिल खोया खोया सा क्यों है. बहुत सारी मोहब्बतें रखी है सहेजकर, दिल के किसी कोने में छुपा रखा है. आने पर दे दूंगा पर , अभी, दिल खोया खोया सा क्यों है. दिल में उठ रही है एक आवाज़ सी, बेहिसाब मोहब्बतों की लहरों सी हैं. बेताब सा दिल है उनके लिए फिर भी, दिल खोया खोया सा क्यों है. ******* रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

क्या प्यार इसी को कहते है (Is this called Love - Hindi Poem)

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जब दिल की आवाज़ हो, होंठो पे प्यार हो, लफ़्ज़ों पे इज़हार हो, और जीना भी दुश्वार हो, क्या प्यार इसी को कहते हैं. जब सावन मोहक लगती हो, जब रातें लंबी लगती हो, जब जून की भरी दुपहरी भी ठंढा एहसास दिलाती हो,  क्या प्यार इसी को कहते है. जब थका हुआ राही जैसे, मन विचलित हो तन भारी हो, पर जैसे तुमसे मिला गले सब दुख का कोई पता नही, क्या प्यार इसी को कहते है. हो तुम कंचन दिल भी कंचन, मैं जब भी खुश हो जाता हूं, जब दिल की बात बताने को, थोड़ा सा शर्मा जाता हूँ, हां प्यार इसी को कहते है. ****** रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

ज़िन्दगी(Life - Hindi Poem)

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दरियां का हक़ है कि बहने दिया जाए, जिंदगी खूबसूरत है रहने दिया जाए. मौत तो अटल है आ ही जाएगी, यूँ भीड़ को कातिल न बनने दिया जाए. ******* रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा Image Credits :   Pixabay 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com

इस दौर में (In These Days - Hindi Poem)

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चलो इस दौर में कुछ हाथ आजमाते है, घरों में कैद है तो क्या, आओ नई राह बनाते है. कुछ किस्से याद करते है, कुछ पुराने फोटो देखते है, याद करके वो गुज़रा जमाना, ज़रा मुस्कुरा लेते है. आओ लूडो बिछाते है, कैरम जमाते है, इस गर्मी के मौसम में बचपन को जी जाते है. थोड़ी सफाई करते है, कुछ अच्छा पकाते है, माना मुश्किल है लेकिन ज़रा हाथ आजमाते है. कुछ किताबें उठाते है, अच्छी मैगी बनाते है, वो बचपन वाला रसना या नींबू पानी मिलाते है. आओ चिड़ियों को पानी, कुत्तों को बिस्किट खिलाते है. इक अदरक वाली चाय लेकर, जरा छत से घूम आते है. चलो अपने  कुछ पुराने दोस्तों को नंबर घुमाते है,   पुराने किस्सों को वापस फिर से यादों में सजाते है. आओ फेसबुक पे पुराने क्रश को फिर से देख आते है, अपने पुराने कारनामों पर थोड़ा शरमाते इठलाते है. थोड़ा ही सही सरकार का साथ कुछ ऐसे निभाते है, चलो अपनों के लिए ही सही घर से बाहर नहीं जाते है. रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click H

बगैर इश्क़(Without Love - Hindi Poem)

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दवा का असर भी बेसर हो जाए, बगैर इश्क़ के ज़िन्दगी कुछ यूं हो जाए. यूं तो खुशियां बहुत सी है ज़िन्दगी में, तुम पास आ जाओ तो बागों में बहार हो जाए. वैसे तो खोया भी बहुत है पाया भी है, गर तुम साथ हो तो ज़िन्दगी गुलज़ार हो जाए. ना दवा है, ना इलाज़ है, ना ज़रा सा रहम, इस दौर में कोरोना को क़ातिल - ऐ - इश्क़ माना जाए. रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा 👉 Click Here for  Facebook Page 👉 Click Here for Youtube Link For more information & feedback write email at :  pktipsonline@gmail.com