क्षमा मांगता हूं ( I Say Sorry - Hindi Poem )
लगी बंदिशें जब, हुआ इल्म मुझको,
कि दिया दर्द जिसको क्षमा मांगता हूं,
मुझे माफ़ करना ऐ उड़ती सी तितली,
जो तुमको था घेरा घने शाख से मैं,
इक प्यारी सी चींटी का परिवार छिना,
जो कागज की कश्ती पे उसको बिठा के,
पता बचपनों में कहां था किसी को,
समझ आई अब जो क्षमा मांगता हूं.
वो चिड़ियां को दाना जो डाला था मैंने,
थी साजिश की उसको पकड़ना है ऐसे,
जो छोटी सी मुट्ठी को पानी में डाला,
और मछली के बच्चे को बाहर निकाला,
अभी जो ये सोचा तो एहसास आया,
किया काम ऐसा क्षमा मांगता हूं.
पतंगों को पत्थर के फंदे में लेकर,
वो छिप के छतों से जो मांझा चुराया,
जो पैसे गिरे थे कहीं पे जमीन पर,
उठाया था मैं सबकी नज़रें बचाकर,
था उम्र का तकाज़ा अभी याद आया,
नहीं देर अब भी क्षमा मांगता हूं.
वो मम्मी के बिस्कुट छुपाए हुए थे,
जो मैंने दुपहरी में चुपके से खाया,
थी जब मुझको इक दिन जरा सी जरूरत,
तो गुल्लक के पैसे को पिन से निकला,
भला ये भी किस्सा कहां याद रहता,
अभी याद आया क्षमा मांगता हूं.
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रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा
Image Credits : Pixabay
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