Those Kendriya Vidyalaya Days!!!

KV Days . सोच कर ही मन में रोमांच भर जाता है कि क्या दिन थे वो. मैंने एक छोटे से स्कूल में नर्सरी से 2 तक पढ़ाई  किया. तभी पता चला की रेलवे एम्प्लाइज के बच्चो के लिए KV खुल रहा है गोंडा में.  मुझे अभी भी याद है जब पापा मुझे प्यार से समझा रहे थे की बेटा एंट्रेंस एग्जाम अच्छे से देना.तुम्हारे भविष्य के लिए इसमें पास होना बहुत ही ज़रूरी है. खैर मैं पास हुआ और विनोद भाई ने मुझे जोमेट्री बॉक्स गिफ्ट में दी. मेरा एडमिशन क्लास ३ में हुआ. मैं केवल २ लोगो को जानता था.और दोनों मेरे प्रिय मित्र है. एक थे भाई खान अज़हर नईम जो पिछले स्कूल में मेरे साथ थे और पुराने नाम नसीम खान को बदल कर आये थे और दूसरे थे भाई अभिषेक सिंह जो मेरे कॉलोनी के थे और सोनू के नाम से हमारी क्रिकेट और आइस पाइस टीम के सदस्य थे.  KV गोंडा जो की शुरुआत में गिरजा चर्च में खुला था. क्लास रूम पर्दो ke द्वारा बांटा गया था. क्लास में दरी पे और सर्दियों में बाहर मैदान में बैठ कर पढ़ाई करने का मज़ा ही कुछ और था. मुझे आज भी वो दिन याद है जब हम लोग म्यूजिक, लाइब्रेरी, ड्राइंग, supw  की क्लास में रिक्वेस्ट करके  गेम्स खेलते थे फिर गुस्से से रामचेत सर का आना होता था और हम लोग क्लास की तरफ भागते थे. चाँद सर के यहाँ सुबह ५ बजे टूशन पढ़ने जाना भी कितना अच्छा लगता था. म्यूजिक सर यानि शर्मा सर, जायसवाल मैडम , रश्मि मैडम, पाठक मैडम तो आज भी याद है. इंस्पेक्शन से एक रात पहले जाग कर कॉपी कम्पलीट करना और सुबह टीचर का गुस्से से कॉपी चेक करना कौन भूल सकता है. वर्मा सर का लैब प्रक्टिकल  में 0  देने की धमकी का भी कोई जवाब नही होता था. पियूष सर का नाम  आते ही आज भी मन सिहर उठता है. उनके क्लास में बहुत खौफ का माहौल होता था. मेरी किस्मत तो और भी ख़राब थी. स्काउट में होने के नाते परेड में उनसे बहुत मार पड़ती थी. वो हेमंत की बोलिंग, वो महेश का अपने आप को Shane Warne  बताना, क्रिकेट खेलते वक़्त सीढ़ियों के पास बैठी लड़कियों के  पास फील्डिंग करना, इंटरवल में भारत भूसण  की साइकिल मांग के घर लंच के लिए  जाना, शुक्रवार को रघुपति राघव राजा राम वाली प्रार्थना से बचने के लिए बेहोश होने का नाटक करना और साथ में आने वाले दोस्तों का भी क्लास में ही रुक जाना कौन भूल सकता है. दुर्गेश के द्वारा विवेकानंद को पान मसाला के लिए टम्पू भाई की दुकान में भेजना, विवेका के द्दारा तोड़े गए आम और इमली को उससे छीन कर सबमे बांटना और फिर घर से लाये हुए नमक मिर्च से एक साथ बैठ कर खाना आज भी याद है .  अजय भाई का धडी धड़ान में कूद कर बचना, अश्वनी का रट कर फिर भूल जाना, आशीष के बोतल का ठंढा पानी पीना, अभिषेक श्रीवास्तव का अच्छा नंबर  लाना, नूपुर का टॉप करना, मोहित का कांगो बजाना, फ़रीहा और ईशा का माँ शारदे पे डांस करना, कैरोल के घर क्रिसमस में जाना, प्रियंका तिवारी का शर्माना जैसे लगता है कल कि ही बात हो.  कविता का मुस्कुराना, अमित भाई का लॉजिक लगाना, दानिश का अपने कड़े जूते का डर दिखाना,  श्वेता  का चुपचाप रह जाना, अभिजीत का मजाक उड़ाना, प्रियंका गौतम के घर बर्थडे पे जाना, मयंक भाई से लड़ाई होने पे पीछे हट जाना. वाह क्या दिन थे.

कुछ चीज़े और भी है कहने को . लेकिन अब इतना इमोशनल हो गया हूँ कि अब लिखा नहीं जाता . आगे फिर यहीं से शुरू करेंगे ये वादा है  क्यूंकि ये कहानी इतनी छोटी नहीं है और हो भी नहीं सकती. शुक्रिया. To be contd.

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Blogger Name : Pramod Kumar Kushwaha
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