प्राचीन गुफाओं और मंदिरों का शहर : बादामी, पट्टदकल और ऐहोले (Trip to Badami, Pattadkal & Aihole - Hindi Blog)


हमारी यह यात्रा मुख्यतः तीन प्राचीन नगरों को घूमने की थी।  अपने परिवार और मित्रों के साथ अपने कार्यस्थान के शहर सांगली महाराष्ट्र से सुबह 7 बजे कर्नाटक के बादामी, पट्टदकल और ऐहोले (Badami, Pattadkal and Aihole) के लिए सड़क मार्ग से निकले। रास्ते में बहुत सारे ढाबे हैं जो कर्नाटक और मराठी व्यंजन जैसे पाँव भाजी, वड़ा पाव , इडली, साम्भर इत्यादि परोसते हैं।  हम लोगों ने भी इन व्यंजनों का लुफ्त उठाया।  पूरे रास्ते मौज़ मस्ती करते करीब 200 किलोमीटर की ये दूरी हम लोगों ने 5 घंटे में पूरा किया।  दोपहर 12 बजे हम लोग बादामी स्थित अपने होटल "क्लार्क्स इन" पहुंचे।  यह बादामी(Badami) का सबसे अच्छा होटल हैं।  थोड़ा सा आराम करने के बाद हम लोग बादामी घूमने के लिए निकले जिसका पूरा विवरण नीचे है : 


बादामी ( Badami )

उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट(Bagalkot) जिले में बादामी(Badami) एक तहसील है।  हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा हुबली में बादामी से 105 किलोमीटर दूर है। बादामी में रेलवे स्टेशन भी है। सड़कमार्ग से कोल्हापुर, पुणे,  बंगलुरु आदि जगहों से हम यहाँ आसानी से पहुंच सकते हैं।  

बादामी(Badami) देश के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थानों में से एक हैं।  इसका प्राचीन नाम वातापी(Vatapi) था जो 540 ईसवी से 757 ईसवी तक चालुक्य राजाओं(Chalukyas) की राजधानी हुआ करता था।  इस शहर की स्थापना चालुक्य राजा पुलकेशी प्रथम ने अगस्त्य नामक एक मानव निर्मित झील के किनारे अश्वमेध यज्ञ करने के बाद किया था। वर्ष 608 ईसवी में पुलकेशी द्वितीय राजगद्दी पर आसीन हुआ।  पुलकेशी द्वितीय बहुत ही अच्छा शासक था।  इसके काल में बादामी / वातापी अपने वैभव के शिखर पर था। वर्ष 642 ईसवी में पल्लव राजा नरसिंह वर्मन ने बादामी पर आक्रमण करके पुलकेशी की सत्ता का अंत कर दिया। नरसिंह वर्मन ने नगर को अपने अधिकार में लेकर जम कर लूटा।  चालुक्य और पल्लव राजाओं में यह लड़ाई बाद में भी चलती रही।  बाद में 750 ईसवी में राष्ट्रकूटों ने नगर को अपने अधिकार में ले लिया। 

बादामी(Badami) अपने गुफाओं, मंदिरों एवं किलों के लिए पर्यटकों को आकर्षित करती है। गुफाओं में निर्मित मंदिरों में हिन्दू तथा जैन मंदिरों का समावेश है।  एक बड़े से पहाड़ी टीले पर 4 गुफाएँ हैं जिसमे 3 हिन्दू  धर्म से और 1 जैन धर्म से सम्बंधित हैं।  

गुफ़ा नंबर 1 : यह गुफा भगवान शिव के नटराज अवतार को समर्पित है जिसमे तांडव नृत्य करते नटराज की 5 फुट ऊँची बेहद खूबसूरत मूर्ति पत्थर को तराश कर बनाई गयी। नटराज के बगल में नंदी और माता पार्वती की मूर्तियों को भी उकेरा गया है। 

गुफ़ा नंबर 2 :  यह गुफा भगवान विष्णु समर्पित है जिसमे उनके वराह अवतार को शिल्पकला के माध्यम से दर्शाया गया है। 

गुफ़ा नंबर 3 : इस गुफा में भगवान विष्णु के अनेक अवतार के साथ भगवान शिव की मूर्तियाँ हैं।  इस गुफा में चालुक्य राजा मंगलेश का कन्नड़ भाषा में लिखा शिलालेख भी मिला है। 

गुफ़ा नंबर 4  :  यह गुफा जैन धर्मावलम्बियों को समर्पित है जिसमें अनेक तीर्थंकरों की मूर्तियों को बनाया गया है।   

गुफाओं(Caves) वाले पहाड़ के दूसरी तरफ अगस्त्य झील के किनारे भूतनाथ मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर चालुक्य शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है जिसमे दक्षिण भारतीय द्रविड़ियन स्थापत्य कला एंव उत्तर भारतीय नागर स्थापत्य कला का भी प्रभाव दिखाई देता है।  

हम लोग लगभग 3-4 घंटे बादामी(Badami) के इन अद्भुत गुफ़ा मंदिरों के परिसर में रहे तथा ढेर सारी फोटोग्राफी और वीडियो रिकॉर्ड किया। घूमने के बाद हम लोग वापस अपने होटल आ गए। अगले सुबह नाश्ता करने के उपरांत हम लोग अपने अपने गंतव्य स्थल पट्टदकल के लिए निकले जिसका विवरण नीचे है।    


पट्टदकल ( Pattadkal )

यह स्थान बादामी से 18 किलोमीटर दूरी पर मलप्रभा नदी के किनारे बसा है।  पट्टदकल(Pattadkal) चालुक्य साम्राज्य का एक अति महत्चपूर्ण नगर था। चालुक्य राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाये। अपने अद्भुत शिल्पकलाओं की वजह से यह "विश्व विरासत स्थलों" की सूची में है। पट्टदकल(Pattadkal) अपने ऐतिहासिक मंदिरों एवं भारतीय स्थापत्य कला के प्रारंभिक प्रयोगों वाले स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है।  इसे मंदिरों का शहर भी कहते हैं।  चालुक्य साम्राज्य में बादामी / वातापी को राजनैतिक राजधानी का दर्ज़ा प्राप्त था तो पट्टदकल इस साम्राज्य की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। 

यहाँ कुल 10 मंदिर हैं जिसमे 4 दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली के, 4 उत्तर भारतीय नागर शैली के, 1 मिश्रित शैली का एवं 1 जैन धर्मशाला है। यहाँ का सर्वश्रेष्ठ मंदिर है विरुपाक्ष का मंदिर जो भगवान शिव  का है। मंदिर के द्वार पर द्वारपालों सुंदर की मूर्तियां हैं।  विरुपाक्ष मंदिर(Virupaksha Temple) के अंदर निर्मित खम्भों पर रामायण एवं महाभारत के दृश्यों को उकेरा गया है जिसमे समुद्र मंथन, चीर हरण, हनुमान द्वारा लंका दहन इत्यादि प्रमुख हैं।  इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष जनवरी में शास्त्रीय नृत्य उत्सव का आयोजन होता था जिसमे पूरे देश से कलाकार आते थे। 
इसके अलावा संगमेश्वर का मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है।  लेकिन किसी अज्ञात वजह से यह मंदिर अधूरा है। पास बने मल्लिकार्जुन मंदिर एलोरा के कैलाश मंदिर के जैसा है।  विरुपाक्ष मंदिर एवं मल्लिकार्जुन मंदिर को विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी ने कांची के पल्लव वंश पर उनकी जीत के सम्मान में बनवाया था।  इन मंदिरों के परिसर के पास बहती मलप्रभा नदी अपने प्राचीन वैभव की कहानी कहती हुई सी लगती है।

हम लोग पट्टदकल(Pattadkal) में करीब 3 घंटे रहे।  चूँकि यह स्थान ऐतिहासिक महत्त्व का है इसलिए जानकारी के लिए हम लोगों ने  गाइड को अपने साथ लिया। गाइड ने पूरे मंदिर परिसर के सभी मंदिरों के बारे में विस्तार से रोचक तरीके से जानकारी साझा किया। मंदिर परिसर को अच्छे से देख कर हम लोगो ने कुछ फोटोग्राफी भी किया।  मंदिर के पास सीढ़ियों से नीचे उतरते  हुए हम लोग मलप्रभा नदी(Malaprabha River) के घाट पर आए।  मलप्रभा के बहते निर्मल जल में कुछ देर पैर रखने पर हमारी साड़ी थकान दूर हो गयी।  मंदिर परिसर के निकास द्वार पर ताज़े नारियल पानी, छाछ , निम्बू पानी और फलों के दुकान थे।  हम लोगों ने ताज़े नारियल पानी का स्वाद लिया और अपने इस यात्रा के अंतिम पड़ाव ऐहोले की तरफ प्रस्थान किया।


ऐहोले  (Aihole )

ऐहोले(Aihole) को स्थापत्य कला का विद्यालय, बादामी को महाविद्यालय और पट्टदकल को विश्वविद्यालय कहा जाता है। ऐहोले(Aihole) मूर्ति एवं वास्तुकला का प्रचीनतम केंद्र था। यह स्थान बादामी से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है।  इसका सम्बन्ध चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय से है। 

यहाँ का मुख्य आकर्षण दुर्गा मंदिर है  जो अपने विशिष्ट वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इसका आकार संसद भवन जैसा है। इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है। इस मंदिर के नाम को लेकर भी कई प्रकार के मान्यताएं हैं। बहुतों का मानना है कि इस सरंचना का नाम देवी दुर्गा के नाम पर पड़ा, जबकि अन्य का मानना है कि दुर्ग (किला) से निकट होने के कारण इसका नाम दुर्गा पड़ा। 

ऐहोले(Aihole) गांव सैकड़ों प्राचीन हिन्दू , जैन और बौद्ध मंदिर से भरे पड़े हैं।  गांव के उत्तरी ओर मलप्रभा नदी के तट पर चट्टानों पर कुछ निशान है जिसके बारे में यह धारणा है कि भगवान परशुराम ने क्षत्रियों की हत्या के बाद अपने कुल्हाड़ी को यहाँ धोया था। अपने देश के प्राचीन विरासतों, उत्कृष्ट स्थापत्य कलाओं और विभिन्न राजवंशों के द्वारा बनाये गए इन मंदिरों का दर्शन निश्चित ही एक अद्भुत अनुभव देता है।

ऐहोले(Aihole) में  हम लोग 2 घंटे का समय बिताया।  गाइड ने हमें सारे दर्शनीय भवनों और मंदिरों के बारे में विस्तार से बताया। हम लोगों ने पूरा परिसर घूमने के बाद यादगार के लिए पूरे समूह के साथ फोटो लिया और इन खूबसूरत स्थानों को अपने स्मृतियों में उतार कर वापस अपने गृह नगर की ओर बढ़ चले। 


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➝ बादामी, पट्टदकल और ऐहोले में ये करना ना भूलें  : गाइड, नारियल पानी पीना, फोटोग्राफी।  
➝ बादामी, पट्टदकल और ऐहोले कैसे पहुँचे  कर्नाटक स्थित बादामी में हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा हुबली में बादामी से 105 किलोमीटर दूर है। बादामी में रेलवे स्टेशन भी है। सड़कमार्ग से कोल्हापुर, पुणे, बंगलुरु,  हैदराबाद आदि जगहों से हम यहाँ आसानी से पहुंच सकते हैं।  
➝ बादामी, पट्टदकल और ऐहोले जाने का सबसे अच्छा समय वैसे तो यह स्थान पूरे वर्ष घूमने के लिए खुला रहता है लेकिन सबसे उत्तम समय अक्टूबर से मार्च का है।  चूँकि सारे मंदिर और ग़ुफायें पत्थर के बने है इसलिए सुबह और शाम के समय यहाँ घूमना अच्छा है क्योकि दोपहर में काफी गर्मी लगने लगता है। 
➝ बादामी, पट्टदकल और ऐहोले में घूमने में लगने वाला अनुमानित समय  :   1 रात  /  2  दिन 

















Blogger Name: Pramod Kumar Kushwaha
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