चलते जाना है (We have to Go - Hindi Poem)

चलते चलते जब रुकना हुआ
तो खुद से ये पूछना हुआ,

कि कल घर से निकला ही क्यों था
जब रुकना ही था तो चला क्यों था,

अन्दर से फिर ये आवाज़ आई
कि चलता रह रुक मत भाई,

जो रुक गया वो सूख गया
जो चलता गया वह मिसाल बना,

कभी समुद्र को सूखते देखा है
कभी दरिया को रुकते देखा है,

तालाब तो अक्सर सूख जाते है
लेकिन लहरे क्यों नहीं सूखती,

जब भी हमने चलना छोड़ दिया
यू समझो अपना  सब कुछ खो दिया,

चींटी और बादल भी चलते रहते है
अपने किरदार को निभाने के लिए,

किरदार को छोड़ कर जीना भी क्या जीना है
थक कर रुक कर ठहरना भी मरना है,

तो चलो फिर से उठ खड़े होते है
मरने से पहले एक बार फिर जी लेते है,

मंज़िल मिले या ना मिले कोई गम नहीं
पर पुरानी सड़क पर नए जोश से बढ़ चलते हैं। 

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रचनाकार - प्रमोद कुमार कुशवाहा 


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