पुरंदर किला : छत्रपति संभाजी महाराज की जन्मभूमि(Trip to Purandar Fort)
महाराष्ट्र में पुणे(Pune) से 40 किलोमीटर दूर पश्चिमी घाट(Western Ghats) की पहाड़ियों में स्थित पुरंदर किला(Purandar Fort) ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण किला है। यह किला अभी भारतीय सेना(Indian Army) के नियंत्रण में है जहाँ भारतीय सैनिकों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिए जाते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील होने की वजह से ज्यादातर स्थानों पर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करने पर प्रतिबंध है। अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटे तो पता चलता है की पुरंदर किले(Purandar Fort) का महत्व बहुत ज्यादा था। इस किले का निर्माण 11वीं शताब्दी में यादव वंश(Yadav Dynasty) के शासकों ने करवाया था। कालांतर में यह किला पर्शियन राजाओं(Persian Kings) के कब्ज़े में चला गया। उसके बाद इस किले पर अहमदनगर और बीजापुर के शासन के अधीन रहा।
वर्ष 1646 ईसवी में कम आयु में ही छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) ने इस किले को जीत लिया। वर्ष 1657 ईसवी में छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) के पुत्र संभाजी महाराज(Sambhaji Maharaj) का जन्म इसी पुरंदर के किले(Purandar Fort) में हुआ। इस किले पर औरंगजेब की नज़र थी और उसने अपने सेनापति जयसिंह की सहायता से पुरंदर किले पर वर्ष 1665 ईसवी में आक्रमण कर दिया। उस समय पुरंदर किले(Purandar Fort) केकिलेदार मुरारबाजी देशपांडे(Murarbaji Deshpande) थे। वह वीरता के साथ मुग़ल सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। समय की जरुरत को समझते हुए और युद्ध को रोकने के लिए छत्रपति शिवाजी और जयसिंह में पुरंदर की संधि(Treaty of Purandar) हुई। इस संधि के बाद छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) को अपने 23 किले और 4 लाख होन्स यानि सोने की मोहरें औरंगजेब को देने पड़े। वर्ष 1670 में छत्रपति शिवाजी ने इस किले को वापस जीत लिया।
इस किले में पुरंदर किले के किलेदार(Purandar Fort) और योद्धा मुरारबाजी देशपांडे(Murarbaji Deshpande) की बड़ी सी मूर्ति स्थापित है। मॉनसून के समय ये किला बहुत ही खूबसूरत दिखने लगता है। किले के अंदर जाने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है लेकिन आपके पास परिचय पत्र(ID Card) होना आवश्यक है। पुरंदर किले(Purandar Fort) में एक संग्रहालय(Museum) भी है जिसमें छत्रपति शिवाजी और संभाजी के शासनकाल से सम्बंधित चित्र रखे हुए हैं। इन चित्रों में चित्रकार का हुनर देखते ही बनता है। संग्रहालय(Museum) में मराठा शासन(Maratha Empire) में जीते गए सभी किलों के फोटो भी लगे हुए हैं। इसके अलावा युद्व में इस्तेमाल होने वाले हथियारों को भी रखा गया है। किले के अंदर संभाजी महाराज(Sambhaji Maharaj) की मूर्ति भी स्थापित है।
पुरंदर किले(Purandar Fort) के ऊपर पहाड़ों में एक बहुत ही सुंदर शिवजी का मंदिर है जिसे केदारेश्वर महादेव(Kedareshwar Mahadev Temple) के नाम से जाना जाता है। वहाँ तक जाने के लिए ट्रैकिंग(Trekking) करना पड़ता है। केदारेश्वर महादेव मंदिर(Kedareshwar Mahadev Temple) जाने से पहले अपने मोबाइल फोन और कैमरा को नीचे नियत स्थान पर सेना के जवानों के पास जमा करना पड़ता है। मंदिर तक की ट्रैकिंग लगभग 1 से 1.5 घंटे में पूरी हो जाती है। मुझे ये पूरा रास्ता बहुत ही अच्छा लगा। मॉनसूनी बारिश के कारण बहुत ज्यादा कोहरा(Fog) था। मंदिर से पहले का रास्ता बहुत ही साहसिक(Adventurous) लगता है। रास्ते के दोनों ओर गहरी खाई थी और तेज़ हवाओं की वजह से कभी कभी थोड़ा रोमांच बढ़ भी जा रहा था। पहाड़ के सबसे किनारे छोर पर भगवान शिव का मंदिर केदारेश्वर महादेव(Kedareshwar Mahadev Temple) स्थित है। हम लोग वहाँ पहुँच कर मंदिर के अंदर जाकर शिवलिंग के दर्शन किये। बारिश बहुत ज़ोरों की हो रही थी। लेकिन बारिश में भीग कर पहाड़ों में घूमने का अपना अलग ही मज़ा है।
थोड़ी देर तक मंदिर के पास रुकने के बाद हम लोग वापस नीचे उतरने लगे। मोबाइल फोन वापस लेने के बाद रास्ते में सुंदर नज़रों का लुफ्त उठाते हुए वापस पुणे में अपने घर की तरफ बढ़ने लगे। यह एक बहुत ही अच्छा दिन था। पश्चिमी घाट(Western Ghats) के सुंदर पहाड़ों में स्थित पुरंदर किले(Purandar Fort) को देखना बहुत ही अच्छा लगा। इसकी ऐतिहासिक विरासत को पास से देखने का अनुभव बहुत यादगार था। आप जब भी पुणे(Pune) आइये तो पुरंदर किले(Purandar Fort) में घूमने जरुर जाइये। आपको इतिहास के साथ साथ प्राकृतिक सुंदरता के भी दर्शन हो जाएँगे।
*********