पन्हाला दुर्ग, विशालगढ़ दुर्ग और पावनखिंड का युद्ध(Panhala Fort, Vishalgarh Fort & Battle of Pawankhind - Hindi Blog)

यूँ तो महाराष्ट्र(Maharashtra) का कण कण छत्रपति शिवाजी महाराज(Chatrapati Shivaji Maharaj) का गौरव गान करता है लेकिन यहाँ के दुर्गम स्थानों पर बने किले/दुर्ग(Fort) मराठा साम्राज्य(Maratha Empire) के वैभव का अमिट साक्ष्य हैं। ऐसे ही किलों में प्रमुख हैं पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर(Kolhapur) में पश्चिमी घाट की पहाड़ियों(Western Ghats) पर स्थित पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) और विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort)। इन दोनों किलों को जोड़ता हैं पावनखिंड का युद्ध(Battle of Pawankhind) जहाँ मराठा शूरवीरों ने अपने शौर्य बल से हमेशा के लिए अपने आप को इतिहास के पन्नों में अमर कर लिया। यहाँ की वीर भूमि आज भी एहसास कराती है कि जब मातृभूमि की प्रतिष्ठा दाँव पर हो तो संख्याबल का कुछ ख़ास महत्त्व नहीं रह जाता है। 

मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे इन स्थानों पर घूमने का मौका मिला। इन स्थानों पर घूमने से मुझे इतिहास के उन पन्नों को टटोलने का मौका मिला जहाँ मराठा साम्राज्य के बारे में लिखा है कि जब वीरता खून में हो तो शत्रु कितना भी शक्तिशाली हो जीत हमेशा सच्चाई और हक का होता है। इन स्थानों के बारे में अपना अनुभव साझा कर रहा हूँ - 

पन्हाला दुर्ग (Panhala Fort)
कोल्हापुर शहर से लगभग 24 किलोमीटर दूर स्थित पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) एक ऐतिहासिक और प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ स्थान है। पन्हाला का शाब्दिक अर्थ "साँपों का घर"(Residence of Snakes) होता है। यह पश्चिमी घाट के सह्याद्रि रेंज(Sahyadri Range of Western Ghats) के पहाड़ों पर बनाया गया है। इस किले का निर्माण वर्ष 1178 से 1209 ईस्वी के मध्य में शिलाहार शासक भोज द्वितीय(King of Shilahar Bhoj Second) ने करवाया था। वर्ष 1489 ईस्वी में बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह(Adil Shah) ने पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) को अपने नियंत्रण में ले लिया। आदिल शाही का नियंत्रण इस किले पर बहुत समय तक था। वर्ष 1659 ईस्वी में मराठा शासक छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) ने पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) को जीत लिया। 

वर्ष 1660 ईस्वी में अली आदिल शाह द्वितीय(Ali Adil Shah - II) ने इस किले को वापस पाने के लिए सिद्दी जौहर(Siddi Jauhar) के नेतृत्व में अपनी सेना भेजी। लगभग 5 महीने तक युद्ध हुआ। पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) को अली आदिल शाह द्वितीय(Ali Adil Shah - II) की सेना ने चारों ओर से घेर लिया था। वक्त की जरूरत को भाँपकर छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) ने पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) को छोड़ना ही उचित समझा। पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) से छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) की ओर बढ़ चले। इसके आगे की कहानी को विस्तार से अगले शीर्षक में बताऊंगा। 

पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) और इसके आसपास का क्षेत्र मॉनसून(Monsoon) के समय ज्यादा खूबसूरत हो जाता है। यहाँ पर एक गार्डन भी है जहाँ परिवार के साथ आप अच्छा समय व्यतीत कर सकते हैं। पहाड़ों से नीचे की घाटियों का दृश्य बहुत सुन्दर नज़र आता है। मॉनसून की बारिश के समय यहाँ की हरियाली देखते ही बनती है। 

पावनखिंड का युद्ध(Battle of Pawankhind)
पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) से छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) अपने विश्वस्त सेनानायक बाजी प्रभु देशपांडे(Baji Prabhu Deshpande)  के साथ 300 सैनिकों को लेकर विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) की ओर जाने लगे। जब आदिलशाही के सेनानायक सिद्दी जौहर(Siddi Jauhar) को छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) के पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) से निकलने का पता चला तो वह 15000 सैनिकों की टुकड़ी लेकर उनके पीछे भागा। पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) से विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) की लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पूरी होती इससे पहले आदिलशाही सेना पास आ पहुँची। यह जुलाई 1660 का समय था। खिंडी नाम के खाई के पास मराठा सेनानायक बाजी प्रभु देशपांडे(Baji Prabhu Deshpande) ने आदिलशाही सेना को रोकने का फैसला करते हुए छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) से विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) जाने का निवेदन किया। दुर्ग पर पहुँचने पर तोप के गोलों से संकेत देने का आग्रह करने के बाद वह शत्रु सेना से लड़ने को ललकारने लगे। 

बाजी प्रभु देशपांडे(Baji Prabhu Deshpande) का साथ दिया शिवा काशिद(Shiva Kashid) ने जो पेशे से एक नाई(Barber) थे। शिवा काशिद देखने में छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) की तरह लगते थे। जिसके कारण आदिलशाही की सेना को एहसास भी नहीं हुआ की छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) की ओर जा चुके हैं। बाजी प्रभु देशपांडे(Baji Prabhu Deshpande) ने 300 मराठा सैनिकों के साथ आदिलशाही की विशाल सेना से जमकर लोहा लिया। सिद्दी जौहर(Siddi Jauhar) और उसकी भारी भरकम सेना खिंडी की खाई से आगे नहीं बढ़ पाई। छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) सकुशल विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) पहुँच गए। वहाँ पहुँचने के बाद तोप के गोलों की आवाज से खिंडी के खाई में लड़ रहे मराठा सेना को संकेत दिया गया। भयंकर युद्ध में असीम साहस का परिचय देते हुए शूरवीर बाजी प्रभु देशपांडे(Baji Prabhu Deshpande) और 300 मराठा सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देते हुए शहीद हुए। छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) ने बाजी प्रभु देशपांडे(Baji Prabhu Deshpande) और 300 मराठा सैनिकों की सम्मान में खिंडी खाई का नाम पावनखिंड(Pawankhind) रख दिया। इस प्रकार यह युद्ध पावनखिंड के युद्ध(Battle of Pawankhind) के नाम से इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज़ हो गया। 

पावनखिंड में पत्थरों से निर्मित एक छोटा किला है जहाँ भगवा ध्वज लहराता बहुत अच्छा नज़र आता है। यहाँ से आस पास का हरियाली से भरा दृश्य बहुत अच्छा लगता है। पावनखिंड के खाई की ओर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी है। जगह जगह पावनखिंड के युद्ध(Battle of Pawankhind) के बारे में जानकारी वाले पत्थर लगाए गए हैं। पावनखिंड के खाई में तलवारों, ढाल और भगवा ध्वज को सजाकर युद्ध की स्मृतियों को संजोया गया है। यहाँ एक बहुत सुन्दर झरना भी है। झरने के पास जाने के लिए लोहे की सीढ़ी लगाया गया है। हम लोग नीचे झरने में जाकर खूब नहाये। प्रकृति की गोद में सुंदरता से भरपूर यह स्थान बहुत अच्छा लगा। 

विशालगढ़ दुर्ग (Vishalgarh Fort)
हमारे इस यात्रा का अंतिम पड़ाव विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) था। पावनखिंड से आगे बढ़ने पर हम लोग एक स्थान पर  रुके। यहाँ से सामने की पहाड़ पर साँप की तरह बना घुमावदार रास्ता बहुत अच्छा दिख रहा था। बादलों ने सामने के पहाड़ों को चारों ओर से घेर रखा था। यहाँ की ठंडी हवा मन को लुभा रही थी। हम लोग कुछ देर तक बैठकर सामने के पहाड़ों और घाटियों को निहारते रहे। थोड़ी देर बाद बारिश होने पर आगे विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) की ओर बढ़ने लगे। विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) एक पहाड़ के चोटी पर बना हुआ है। इसके विशाल आकर के कारण ही इसका नाम विशालगढ़ पड़ा। नीचे से देखने पर हरे भरे पहाड़ के ऊपर काले पत्थरों से निर्मित विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) साफ़ नज़र आता है। 

हम लोग 15-20 मिनट में पैदल चलकर विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) के ऊपर पहुँच गए। वहाँ से चारों ओर का सुन्दर अच्छा दिखता है। विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) में एक दरगाह भी है। विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) के ऊपर उन तोपों के अवशेष अभी भी हैं जहाँ से गोले दागकर पावनखिंड में युद्ध लड़ रहे मराठा सैनिकों को छत्रपति शिवाजी(Chatrapati Shivaji) के यहाँ सकुशल पहुँचने का संकेत दिया गया था। विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) में मुझे स्वच्छता का अभाव दिखा जिससे थोड़ी निराशा भी हुई। इस दुर्ग के ऐतिहासिक महत्त्व को देखते हुए इसे और अच्छे देख रेख की जरुरत है। 

पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) और विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) की 60 किलोमीटर की यात्रा जिस मार्ग से छत्रपति शिवाजी महाराज(Chatrapati Shivaji Maharaj) ने पूरी की वह मार्ग अब ट्रैकिंग(Trekking) के लिए प्रसिद्ध है। पन्हाला दुर्ग(Panhala Fort) से विशालगढ़ दुर्ग(Vishalgarh Fort) की यह ट्रैकिंग(Trekking) 2 दिन में पूरा होता है। जब भी मौका मिले इन स्थानों पर आकर यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को जरुर देखिये।

छत्रपति शिवाजी महाराज(Chatrapati Shivaji Maharaj) की जय हो। 

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पन्हाला दुर्ग, विशालगढ़ दुर्ग, पावनखिंड में ये करना ना भूलें : पावनखिंड के झरने में नहाना, मॉनसून के समय इन किलों के पास के पहाड़ों देखना।  
पन्हाला दुर्ग, विशालगढ़ दुर्ग, पावनखिंड कैसे पहुँचे निकटतम हवाई अड्डा कोल्हापुर में है तथा निकटतम रेलवे स्टेशन भी कोल्हापुर है जहाँ के लिए पुणे, मुंबई , दिल्ली इत्यादि शहरों से ट्रेन मिलती हैं। कोल्हापुर, पुणे, सांगली तथा देश के अन्य बड़े शहरों से कोल्हापुर होते हुए आप सड़क मार्ग से पन्हाला दुर्ग, पावनखिंड तथा विशालगढ़ दुर्ग आसानी से पहुँच सकते हैं।  
पन्हाला दुर्ग, विशालगढ़ दुर्ग, पावनखिंड जाने सबसे अच्छा समय : वैसे तो पूरे साल इन स्थानों पर जा सकते हैं लेकिन मानसून में यहाँ जाना सबसे अच्छा रहेगा। 
सांगली जाने में लगने वाला समय  : 2 दिन / 1 रात



Blogger Name: Pramod Kumar Kushwaha
Photos By: Avinash Gupta & Pramod Kumar Kushwaha
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