सिंहगढ़ का किला : तानाजी मालुसरे की शौर्य भूमि और नीलकंठेश्वर मंदिर (Trip to Sinhgarh Fort & Neelkantheshwar Temple - Hindi Blog)

क्या आपने अजय देवगन अभिनीत बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म  'तानाजी : द अनसंग वारियर'(Tanhaji - The Unsung Warrior) देखा है ? अगर नहीं तो जरुर देखिये। फिल्म में दर्शाए गए कोंढाणा दुर्ग(Kondhana Fort) को अब सिंहगढ़ दुर्ग(Sinhgarh Fort) के नाम से जाना जाता है।  यह पुणे से 30 किलोमीटर की दूरी पर सह्याद्रि की पहाड़ियों(Sahayadri Hills) के ऊपर स्थित है। 

कोंढाणा का किला(Kondhana Fort) पहले मराठा शासन के अधीन था लेकिन शहाजी राजा को मुग़ल शासक आदिल शाह के कैद से छुड़ाने के लिए हुए  'पुरंदर की संधि' (Treaty of Purandar) के वजह से यह किला वर्ष 1649 में मुगलों के पास चला गया। आदिल शाह ने उदयभान को इस किले का अधिकारी नियुक्त किया।  कुछ समय बाद छत्रपति शिवाजी ने स्वराज की घोषणा करते हुए कोंढाणा किले(Kondhana Fort) को वापस मराठा शासन के नियंत्रण में लाने की योजना बनाई।  छत्रपति ने इसके लिए अपने सबसे योग्य अधिकारी और बचपन के मित्र सूबेदार तानाजी मालुसरे को चुना। तानाजी ने अपने बेटे रायबा की शादी से पहले कोंढाणा दुर्ग फतह करने का निश्चय किया ये बोलते हुए कि 'आधी लग्न कोंढाण्याचं मग रायबाचं' (पहले कोंढ़ाणा मुहिम बाद में मेरे बेटे की शादी)। 
वर्ष 1672 में तानाजी ने अपने गांव के मावले सैनिकों ( मावल प्रान्त से चुने गए वीर सैनिक) की सहायता से कोंढाणा किले(Kondhana Fort) पर विजय पताका फहराने के लिए हमला कर दिया।  मुग़लों और मराठा योद्धाओं में भीषण युद्ध हुआ और मराठा वीरों ने जीत का परचम फहराया।  लेकिन इस युद्ध में सूबेदार तानाजी मालुसरे अदम्य वीरता का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। छत्रपति शिवाजी में तानाजी की मृत्यु पर शोक जताते हुए बोले कि 'गढ़ आला पण सिंह गेला' (मतलब दुर्ग मिला पर सिंह गया)। उन्होंने कोंढाणा किले का नाम बदलकर सिंहगढ़ किला कर दिया।  इस किले में सूबेदार तानाजी मालुसरे की याद में एक स्मारक और मूर्ति स्थापित की गयी है। 

सिंहगढ़ का किला(Sinhgarh Fort) एक बहुत ही सुन्दर प्राकृतिक दर्शनीय स्थल है। मानसून(Monsoon) के समय यहाँ आना बहुत अच्छा लगता है।  चारों ओर हरे पहाड़ को देखना सुकून का एहसास दिलाता है।  यहाँ स्थानीय औरतों द्वारा चूल्हे पर बना स्वादिष्ट 'झुणका-भाकर' (एक प्रसिद्ध महाराष्ट्रियन व्यंजन) जमीन पर चटाई पर बैठकर खाना बहुत अच्छा लगा। पुणे के बहुत पास होने के कारण सप्ताहांत (Week End) में सिंहगढ़ किला(Sinhgarh Fort) आसानी से घूमा जा सकता है।  यहाँ मानसून(Monsoon) के समय जाना चाहिए जब पश्चिमी घाट(Western Ghats) के पहाड़ बहुत हरे भरे और मनमोहक लगते हैं।  

➥ नीलकंठेश्वर मंदिर  (Neelkantheshwar Temple)
सिंहगढ़ दुर्ग(Sinhgarh Fort) से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर खड़गवासला(Khadakwasla Dam) और पानशेत बाँध(Panshet Dam) के मध्य एक छोटी सी पहाड़ी पर नीलकंठेश्वर मंदिर(Neelkantheshwar Temple) स्थित है। पहाड़ के ऊपर समतल जगह पर खुले आसमान के नीचे देवी देवताओं की भव्य मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। यहाँ धार्मिक घटनाओं से सम्बंधित तमाम दृश्यों जैसे समुद्र मंथन, द्रौपदी चीरहरण, मोहिनी अवतार, कुम्भकरण को निद्रा से जगाना, भगवान राम का वानरों की सहायता से सेतु निर्माण इत्यादि को मूर्तिकला के माध्यम से बहुत सुंदर रूप में दर्शाया गया है। मुझे यहाँ जो सबसे अच्छी चीज़ लगी वो पहाड़ के सबसे आखिरी छोर पर निर्मित भगवान विट्ठल, संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम की विशाल मूर्तियाँ। पहाड़ के किनारे स्थापित होने के कारण आसमान की पृष्ठभूमि ये विशाल मूर्तियाँ बहुत ही अलौकिक लगती हैं।  सिंहगढ़ फोर्ट में घूमने के बाद आप नीलकंठेश्वर मंदिर(Neelkantheshwar Temple) उसी दिन घूमकर  वापस पुणे लौट सकते हैं।

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सिंहगढ़ किले पर ये करना ना भूलें सिंहगढ़ किले के अंदर चूल्हे पर बना झुणका-भाकर खाना, फोटोग्राफी।
सिंहगढ़ किले पर कैसे पहुँचे  : पुणे से 30 किलोमीटर दूर स्थित सिंहगढ़ दुर्ग पर कार द्वारा आसानी से  पहुंच सकते है।
सिंहगढ़ किले पर ससे अच्छा समय : सिंहगढ़ किले पर जाने के लिए सबसे अच्छा समय जून से फरवरी तक का है। पुणे के कात्रज से सिंहगढ़ किले तक का नाईट ट्रैकिंग भी बहुत प्रसिद्ध है।
सिंहगढ़ किले पर जाने में लगने वाला समय  :  1 दिन 












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