पैंगोंग त्सो : लद्दाख के पहाड़ों में नीली झील (Trip to Pangong Tso - Hindi Blog)

लद्दाख(Ladakh) में घूमने के क्रम में नुब्रा घाटी(Nubra Valley) देखने और रात में रुकने के बाद हम लोगों का अगला पड़ाव विश्वप्रसिद्ध पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) था। त्सो(Tso) लद्दाख(Ladakh) के स्थानीय भाषा में झील(Lake) को कहा जाता है। नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की दूरी लगभग 275 किलोमीटर है। भारत - चीन के मध्य विवाद में इस झील का जिक्र हम सबने सुना था। इसके अलावा बॉलीवुड के अभिनेता आमिर खान की मशहूर फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots) में भी इस झील को दिखाया गया है। हम लोग जब नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के लिए निकले तो पता चला कि श्योक नदी(Shyok River) की ओर से जाने वाला रास्ता अत्याधिक पानी बहने के कारण टूट गया है और इसे बंद दिया गया है। हमारे ड्राइवर फुंचोक आंगचोक(Phunchok Angchok) ने बताया कि परेशान होने की जरूरत नहीं है और हम दूसरे रास्ते से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) चलेंगे।  

पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की तरफ जाने वाला यह नया रास्ता पुराने रास्ते की अपेक्षा 80 किलोमीटर ज्यादा लंबा और बेहद दुर्गम पहाड़ों से होकर गुजरता है। एक स्थान पर रुक कर हम लोगों ने लद्दाख(Ladakh) के स्थानीय व्यंजन थुक्पा(Thukpa) खाया जो नूडल(Noodle) और सब्जियों(Vegitables) से बना सूप(Soup) जैसा लग  रहा था।करीब 4 घंटे के सफर के बाद हम लोग वरीला(Wari La) दर्रे(Mountain Pass) से होकर गुजरे। यहाँ का तापमान बहुत कम था। पहाड़ों की बर्फ पिघल कर छोटी धाराएं बन कर रास्ते पर आ रही थी। वरीला दर्रे(Wari La) में थोड़ा रुकने के बाद हम आगे बढ़े। रास्ते के किनारे नदी के पास हम लोगों को ढेर सारे यॉक(Yak) चरते हुए दिखाई दिए। कुछ स्थानों पर शिकार की तलाश करते बड़े आकर के जंगली कुत्ते भी नजर आये। नदी के किनारे बहुत जगह टेंट लगाकर कैंप करते युवाओं के समूह दिख रहे थे। 

नुब्रा घाटी(Nubra Valley) से करीब 10 घंटे की लंबी लेकिन साहसिक(Adventurous) यात्रा के बाद हम लोग लद्दाख(Ladakh) के प्रसिद्ध पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के पास पहुँचे। नीले पानी की यह झील बहुत दूर से दिखने लगी थी। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) दिखते ही हमारा थकान दूर होने लगा और हम लोग जोश से भर उठे। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) 134 किलोमीटर लंबी बूमरैंग(Boomrang) के आकर की खारे पानी की झील(Salt Water Lake) है जिसका एक तिहाई हिस्सा भारत में तथा बाकी का हिस्सा चीन के नियंत्रण में है। झील के किनारे की लाइन से टेंट बने हुए थे। आज की रात हम लोगों को पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे इन्हीं टेंटों में रहना था। अपना सारा सामान पूर्व निर्धारित टेंट में रखने के बाद हम लोग पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के पास घूमने गए। इस झील का पानी बहुत स्वच्छ(Clean) और पारदर्शी(Transparent) था। आसमान में बादलों का नामोनिशान ना होने के कारण यह बहुत नीला दिख रहा था। साफ नीले आसमान की वजह से पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) का रंग भी गाढ़ा नीला नजर आ रहा था। अपने इसी रुप रंग के कारण यह झील पूरी दुनिया में लोकप्रिय है। इस झील के दूसरी ओर ऊँचे पहाड़ हैं। 

पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) में हमने पानी में थोड़ा अंदर जाकर देखा। झील का पानी इतना पारदर्शी था कि दूर तक इसका तल साफ दिख रहा था। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) का पानी बहुत ठंडा था और इसमें खड़े रहना बहुत मुश्किल हो रहा था। कुछ सेकंडों में ऐसा लगा जैसे पैर सुन्न हो गया हो। हम लोग इस झील के किनारे बहुत देर तक बैठे रहे। यहाँ हमने जम कर फोटोग्राफी किया। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे प्रसिद्ध फिल्म 3 इडियट्स(3 Idiots) के दर्शाया गया स्कूटर भी रखा था जिसपर बैठकर हमने भी फोटो लिया। अब शाम होने लगी थी और हल्की बारिश शुरू होने के कारण सभी अपने टेंट की ओर जाने लगे। रात में पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के पास तापमान बहुत नीचे गिर जाता है। हम लोग गर्म कपड़े पहन कर खाना खाने गए। उसके बाद देर रात तक टेंट के बाहर बड़े आकार में दिख रहे चाँद की रौशनी में ठंडी हवाओं के बीच बाते करते रहे। नींद आने लगी तो अपने टेंट में सोने आ गए। टेंट बहुत अच्छे और गर्म थे। इसके अंदर से बाहर के मौसम का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था। गर्म आरामदायक बिस्तर में रात को नींद बहुत अच्छी आयी। 

सुबह तैयार होकर हम लोग एक बार फिर पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे गए। इसकी खूबसूरती को निहारने से आँखों को बहुत सुकून मिल रहा था। वाकई यह झील बहुत सुन्दर है। आसमान में भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर गश्त लगाते दिखे। हम लोग पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे दूर किनारों तक टहलते रहे। सर्दियों में इस झील में बर्फ जम जाती है ऐसा स्थानीय लोगों ने हमें बताया। बहुत देर तक अच्छा समय बिताने के बाद अब पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से लौटने का वक़्त आ गया था।  हम लोग अपने आप को बहुत खुशनसीब मान रहे थे कि हमें पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) देखने का मौका मिला। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से हम लोग लेह(Leh) की ओर यात्रा करने लगे। एक स्थान पर हम लोगों को बॉलीवुड के बेहद मशहूर गायक(Bollywood Singer) जुबिन नौटियाल(Jubin Nautiyal) दिखे। हमने उनके साथ फोटो भी खिचवाया। यह एक प्रकार से हमारे पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की यात्रा का खूबसूरत तोहफा था। 

पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से लेह(Leh) का रास्ता बहुत मायनों में बेहद कठिन लेकिन साहसिक(Adventurous) था। कई स्थानों पर पहाड़ों का बर्फ पिघलने से पानी की तेज़ धाराएं रास्ते के ऊपर बह रही थी। इसके वजह से रास्ता कई जगह से टूट गया था और उबड़ खाबड़ होने की वजह से गाड़ियों के पहिए फँस जा रहे थे। ऐसा इस रास्ते में 2-3 बार हुआ। लेकिन सभी लोग गाड़ियों को हाथों से धकेल कर इन पानी के धाराओं को पार करने में मदद कर रहे थे। कुछ देर बाद एक और दर्रा(Mountain Pass) चांगला(Chang La) पार करने के बाद हम लोग लेह(Leh) आ गए। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) से लेह(Leh) की लगभग 225 किलोमीटर की दूरी 6 घंटे में पूरी हुई थी। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) की लंबी सड़क यात्रा के बाद हम लोग लेह(Leh) में पूर्व निर्धारित अपने होटल पहुँच गए। 

लद्दाख(Ladakh) आकर पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) को देखना हमारा एक सपना था जो साकार हो चुका था। मैंने इससे सुन्दर झील आज तक नहीं देखा था। चारों ओर पथरीले पहाड़ों से घिरी यह झील वाकई में लाजवाब है। पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) के किनारे बैठ कर इसे देखना कभी ना भूल पाने वाला पल था। इसकी सुंदरता को यहाँ आकर ही महसूस किया जा सकता है। किताबों में जैसा पढ़ा था या वीडियो में जैसा देखा था पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) उससे भी ज्यादा खूबसूरत लगा। यहाँ अपने जीवन में एक बार जरूर आइये। 

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पैंगोंग त्सो में ये करना ना भूलें  : पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) में टेंट में रात गुज़ारना, नीले साफ़ आसमान के नीचे बैठकर पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) को देखना, फोटोग्राफी।
पैंगोंग त्सो कैसे पहुँचे  : पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) आने के लिए लद्दाख की राजधानी लेह आना पड़ता है। निकटतम हवाई अड्डा लद्दाख की राजधानी लेह में है। सड़कमार्ग से लद्दाख पहुँचने के दो रास्ते हैं। श्रीनगर से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1(NH-1) से लद्दाख आ सकते हैं। दूसरा रास्ता मनाली से लद्दाख आने का है। दोनों ही रास्ते बहुत सुन्दर और रोमांच से भरपूर हैं। लद्दाख अभी रेलमार्ग से नहीं जुड़ा हुआ हैं।   
पैंगोंग त्सो जाने सबसे अच्छा समय : लद्दाख के पैंगोंग त्सो(Pangong Tso) में घूमने का सबसे अच्छा समय गर्मियों में अप्रैल से जुलाई तक का हैं। 
पैंगोंग त्सो जाने में लगने वाला समय  : 2 दिन / 1 रात










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