हागिआ सोफिआ : एक इमारत का धर्मपरिवर्तन (Hagia Sophia - The Proselytism of a Building)

तुर्की गणराज्य(Republic of Turkey) के एक प्रसिद्ध शहर इस्तांबुल(Istanbul) में स्थित एक इमारत का नाम हागिआ सोफिआ(Hagia Sophia) है। इंसान को धर्म परिवर्तन(Proselytism) करते हुए हम सब ने सुना है। लेकिन क्या इमारतें भी धर्म परिवर्तन कर सकती हैं? सुनने में तो ये अज़ीब लगता है लेकिन ये सच्ची घटना है हागिआ सोफिआ(Hagia Sophia) की। हागिआ सोफिआ(Hagia Sophia) दो ग्रीक शब्दों से मिलकर बना है। हागिआ(Hagia) को तुर्की भाषा में अया बोला जाता है। अया(Hagia) का अर्थ होता है पवित्र(Holy) और सोफिआ(Sophia) का बुद्धिमत्ता(Wisdom)। 

अया सोफ़िया (Hagia Sophia) के बारे में जानने के लिए हमें टटोलना होगा रोमन साम्राज्य(Roman Empire) से सम्बंधित इतिहास के उन पन्नों को जिसकी शुरुवात होती है चौथी सदी में। उन दिनों रोमन साम्राज्य पर सम्राट(Emperor) कोनस्टैनटिन प्रथम(Constantine-I, Ruled Year 306 AD to 337 AD) का शासन था। कोनस्टैनटिन प्रथम ऐसे पहले रोमन शासक थे जिन्होंने ईसाई धर्म (Christianity) अपनाया। इससे पहले रोमन साम्राज्य में विभिन्न देवताओं की पूजा होती थी जिसमे जुपिटर(Jupitor), जूनो(Juno), मार्स(Mars) इत्यादि प्रमुख थे। ईसाई धर्म रोमन साम्राज्य का आधिकारिक धर्म(Official Religion) बना। सम्राट कोनस्टैनटिन प्रथम ने वर्ष 330 ईस्वी में रोमन साम्राज्य के शहर बेजेंटियम(Byzantium) में अपना नया राजधानी बनाया और उसका नाम रखा कोंस्टनटिनोपोल(Constantinople)।

सम्राट कोनस्टैनटिन द्वितीय(Constantine-II) ने वर्ष 360 ईस्वी में कोंस्टनटिनो पोल(Constantinople) शहर के मध्य में एक चर्च(Church) बनवाया जो लकड़ी का था। वर्ष 404 ईस्वी में इस चर्च को लड़ाई झगड़े में जला दिया गया।  11 साल बाद तब के शासक थिओडोसीओ द्वितीय(Theodosius-II) ने उसी स्थान पर एक नया चर्च बनाया।  करीब 100 साल बाद वह चर्च भी आग लगने से नष्ट हो गया। इस समय रोमन साम्राज्य पर सम्राट जुस्तीनीओं(Justinian) शासन कर रहे थे। सम्राट जुस्तीनीओं(Justinian) ने फिर से उसी स्थान पर एक भव्य चर्च बनवाया। वर्ष 532 ईस्वी से वर्ष 537 ईस्वी लगभग 5 साल में यह बनकर तैयार हुआ। यह एक विशाल गुम्बद वाला बेहद खूबसूरत चर्च था जिसमे पूरी दुनिया से मंगवाकर साज़ो सामान लगाए गए थे। सोने, चाँदी संगमरमर इत्यादि बेहद क़ीमती वस्तुओं से बना यह चर्च पूरे विश्व में विख्यात हो चला था। इस चर्च को ईसाइयत(Christianity) का एक प्रमुख केंद्र माना गया। इस चर्च को ही अया सोफ़िया(Hagia Sophia) के नाम से जाना जाता है। 

जैसा की कहा जाता है कि अच्छा समय भी हमेशा नहीं रहता।  ऐसा ही कुछ अया सोफ़िया(Hagia Sophia) के साथ भी हुआ। इतिहास ने पन्ना पलटा। चर्च बनने के लगभग 916 वर्ष बाद सन 1453 में कोंस्टनटिनोपोल(Constantinople) पर ओटोमन साम्राज्य(Ottoman Empire) के एक सुल्तान जिसका नाम फ़तिह महमद(Mehmed-II or Mehmed the Conqueror) ने आक्रमण करके जीत लिया। सुल्तान फ़तिह महमद ने कोंस्टनटिनो पोल शहर का नाम बदलकर इस्ताम्बुल(Istanbul) रखा और इसे ओटोमन साम्राज्य(Ottoman Empire) की राजधानी घोषित किया। इस सत्ता परिवर्तन से अया सोफ़िया(Hagia Sophia) भी कहाँ अछूता था।  सुल्तान फ़तिह महमद ने अया सोफ़िया(Hagia Sophia) चर्च को मस्जिद(Mosque) में बदल दिया। इसमें नए फेरबदल किये गए जैसे अया सोफ़िया(Hagia Sophia)  के चारों कोनों पर विशाल मीनारें बनाई गयी। इसे दुनिया भर के ईसाईयों ने अपना अपमान माना और भविष्य में इसको वापस अपने कब्ज़े में लेकर चर्च की पुनर्स्थापना का निश्चय किया। 

समय का चक्र घूमता रहा और अब समय आया वर्ष 1914 का जब प्रथम विश्व युद्ध(World War - I) की शुरुवात हुई। अब तक ओटोमन साम्राज्य(Ottoman Empire) काफी कमजोर हो चला था। ओटोमन साम्राज्य प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ रहा और रूस, ब्रिटेन तथा फ्रांस के खिलाफ लड़ाई लड़ा। वर्ष 1918 में प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति हुई। जर्मनी और उसके सहयोगियों की हार के बाद ऑटोमन साम्राज्य का पतन हो गया। वर्ष 1922 में सुल्तान का पद हमेशा के लिए समाप्त कर दिया गया और वर्ष 1923 में एक नए देश तुर्की(Republic of Turkey) की स्थापना हुई। तुर्की के नए राष्ट्रपति बने मुस्तफा कमालपाशा अतातुर्क(Mustafa Kamalpasha Ataturk) ।

मुस्तफा कमालपाशा अतातुर्क(Mustafa Kamalpasha Ataturk) एक क्रांतिकारी, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष छवि के नेता थे। उन्होंने सन 1923 से 1938 ईस्वी तक तुर्की पर शासन किया। उन्होंने तुर्की को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र(Secular State) बनाया। अपने शासनकाल में मुस्तफा कमालपाशा ने अया सोफ़िया(Hagia Sophia) जो की एक मस्जिद बना दी गयी थी उसका धार्मिक स्वरुप को बदल कर एक संग्रहालय(Museum) का रूप दे दिया। अतातुर्क के इस कदम का पूरी दुनिया में स्वागत किया गया। इसे साम्प्रदायिक सौहार्द(Communal Harmony) को बढ़ाने वाला निर्णय बताया गया। यह संग्रहालय धर्मनिरपेक्ष तुर्की(Secular Turkey) का पहचान बना। लेकिन तुर्की के मुस्लिम समाज के एक हिस्से में इसको लेकर रोष पनप रहा था। 

कालचक्र चलता रहा और यह वर्ष 2002 की बात है जब तुर्की में एक इस्लामिक रूढ़िवादी(Islamic Conservative) पार्टी जिसका नाम जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (Justice & Development Party) यानि एके पार्टी(AK Party) सत्ता में आयी जिसके नेता थे रज़ब तैय्यब एर्दोगान(Recep Tayyip Erdogan)। वर्ष 2002 से 2014 एर्दोगान तुर्की के प्रधानमंत्री बने रहे।  बाद में ये तुर्की के राष्ट्रपति बने और संविधान में परिवर्तन करके राष्ट्रपति की शक्तियों को बढ़ा दिया। रज़ब तैय्यब एर्दोगान(Recep Tayyip Erdogan) की विचारधारा का एक मुख्य अंग था अया सोफ़िया(Hagia Sophia) को संग्रहालय(Museum) से वापस मस्जिद(Mosque) में बदलने की सोच का। उनकी पार्टी समय समय पर इसकी वकालत भी करती रही। लेकिन एर्दोगान(Erdogan) की छवि अपने प्रारंभिक शासनकाल में एक उदारवादी(Liberal) और विकासवादी(Evolutionary) नेता की रही। लेकिन धीरे धीरे तुर्की में एर्दोगान शासन के प्रति लोगों में गुस्सा बढ़ रहा था। इस बात का राष्ट्रपति एर्दोगान को एहसास भी हो रहा था।  एर्दोगान ने अपने शासन को बनाये रखने के लिए वापस अपने मूल विचारधारा की ओर बढ़ते हुए अया सोफ़िया(Hagia Sophia) के बारे में कुछ ऐसा निर्णय लेना तय किया जिससे वापस जनता बीच लोकप्रिय हो सके। 

वर्ष 2020 में राष्ट्रपति एर्दोगान ने कोंस्टनटिनोपोल(Constantinople) शहर पर ऑटोमन साम्राज्य की जीत के 567 वर्ष पूरा होने के अवसर पर अया सोफ़िया(Hagia Sophia) संग्रहालय को फिर से मस्जिद में परिवर्तित करके वहाँ नमाज पढ़ने की इजाजत दे दिया। एर्दोगान(Erdogan) के इस कदम का पश्चिमी देशों तथा रूस, अमेरिका सहित ईसाई समुदाय ने कड़ा विरोध किया। इस विरोध को एर्दोगान ने तुर्की के घरेलू राजनीति और मुस्लिम जगत में अपनी छवि चमकाने के लिए नज़रअंदाज़ कर दिया। वर्तमान में अया सोफ़िया(Hagia Sophia) में अन्य मस्जिदों की तरह नमाज़ पढ़ा जाता है। 

यह थी अया सोफ़िया(Hagia Sophia) नाम की उस इमारत की कहानी जिसको इतिहास के साथ साथ अपने स्वरुप को भी बदलना पड़ा। अक्सर हम लोग ऐसी घटनाओं को बस दो धर्मों बीच की लड़ाई के रूप में देखते है लेकिन इसके उलट ऐसी घटनाओं में कहानी विचारधाराओं, राजसत्ता को बनाये रखना, शासक द्वारा अपनी छवि निर्माण के साथ जनता पर अपनी पकड़ बनाये रखना भी होता है। अया सोफ़िया(Hagia Sophia)  पर अपने निर्णय से राष्ट्रपति एर्दोगान ने अपनी छवि मुस्लिम समाज के एक बड़े हिस्से और इस्लामिक देशों में एक नायक के रूप पेश किया है। लेकिन यह ज़रूर है कि अया सोफ़िया(Hagia Sophia)  को भविष्य की गर्त में बहुत कुछ देखना बाकी है। 

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Article Sources: Wikipedia, Documentary Videos, Articles from Newspapers of India & World
Image Source: Pixabay


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